पतझड़ फिर
पतझड़ फिर
सपनों का एक महल बनाया
ख्वाबों के रंगों से उस सजाया
बसाया उसमे एक मीठा अहसास
उस संजो के रखा दिल के पास।
ऋतु बदली, मौसम बदला
पतझड़ फिर वापस आया
अरमानों के पत्ते टूटे, खुश्क हुए, हरे थे बूटे
प्रेम की छाया ख़तम हुई, ठूंठ रह गए सारे सपने।
निष्ठुर शीत का सर्द आभास
ज़मा रहा रिश्तों के अहसास
अब नहीं आंसू भी पास
दिल में बस एक चुभती फांस।
आंसू के नमक से सींची
हो गई मन कि धरती बंजर
अब इसमें न फूल खिलेंगे
अरमानों के न बाग सजेंगे
पतझड़ अब न जाएगा, प्रेम पुष्प न खिल पाएगा।।
आभार - नवीन पहल - २७.०९.२०२३ 👍🙏🌹❤️
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KALPANA SINHA
29-Sep-2023 01:46 PM
Awesome
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Varsha_Upadhyay
28-Sep-2023 02:09 PM
Nice
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
28-Sep-2023 08:51 AM
शुरुआत की चार लाइंस में उस को उसे करें
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